Monday 21 March 2016

तुम्हारे पास रह कर इस कदर आबाद होता हूँ
महीने माघ में संगम का इलाहाबाद होता हूँ

हमारा इश्क़ गोया है लिखावट ताज़ के जैसी
बनो मुमताज़ तुम, मैं भी अमीनाबाद होता हूँ

तुम्हारे आँख से मोती की लड़ियां जब भी गिरती हैं
मैं जमुना के कगार-ओ-फाग सा बर्बाद होता हूँ

करीने से सजी है आज़कल ये मेरी दुनिया यूँ
तुम्हारे हुस्न के जलवों से जिंदाबाद होता हूँ

तू है गुलजार मेरे फज्र से संध्या के वंदन तक
मैं रब से राम तक सैयद अली कुर्बाद होता हूँ

© Siddharth Priyadarshi

4 comments:

  1. अद्भूत शब्द संयोजन

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  2. शब्दों का गज़ब सयोंजन , जैसे माला में हरेक फूल भिन्न रंग का है पर माली को पता है की उसे कहा पिरोना है ।।

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