तुम्हारे पास रह कर इस कदर आबाद होता हूँ
महीने माघ में संगम का इलाहाबाद होता हूँ
हमारा इश्क़ गोया है लिखावट ताज़ के जैसी
बनो मुमताज़ तुम, मैं भी अमीनाबाद होता हूँ
तुम्हारे आँख से मोती की लड़ियां जब भी गिरती हैं
मैं जमुना के कगार-ओ-फाग सा बर्बाद होता हूँ
करीने से सजी है आज़कल ये मेरी दुनिया यूँ
तुम्हारे हुस्न के जलवों से जिंदाबाद होता हूँ
तू है गुलजार मेरे फज्र से संध्या के वंदन तक
मैं रब से राम तक सैयद अली कुर्बाद होता हूँ
© Siddharth Priyadarshi