Monday 21 March 2016

तुम्हारे पास रह कर इस कदर आबाद होता हूँ
महीने माघ में संगम का इलाहाबाद होता हूँ

हमारा इश्क़ गोया है लिखावट ताज़ के जैसी
बनो मुमताज़ तुम, मैं भी अमीनाबाद होता हूँ

तुम्हारे आँख से मोती की लड़ियां जब भी गिरती हैं
मैं जमुना के कगार-ओ-फाग सा बर्बाद होता हूँ

करीने से सजी है आज़कल ये मेरी दुनिया यूँ
तुम्हारे हुस्न के जलवों से जिंदाबाद होता हूँ

तू है गुलजार मेरे फज्र से संध्या के वंदन तक
मैं रब से राम तक सैयद अली कुर्बाद होता हूँ

© Siddharth Priyadarshi

Thursday 3 March 2016

उसके अरमानों की चीजे़ं, हैं उसकी फरमाइश में
मोल सको तो इश्क़ तुम्हारा, जीतेगा अज़माइश में

सपने हैं; बस कीमत इनकी अंधरों तक कायम है
खुली आँख पुतली पर ये, बिकते बीस या बाईस में

कैसे कैसे रंग चढ़े हैं, अशआरों की सोहबत में
कलम से नीले मोती गिरते, मकतों की पैदाइश में

© Siddharth Priyadarshi

Wednesday 2 March 2016



मृगतष्णा सी प्यास है अपनी, नित बढ़ती अभिलाष है
गज भर की है अपनी धरती, अंगुल भर आकाश है

हंसना-रोना, खोना-पाना जीवन के हैं रंग सभी
खुशियों के पन्नों पर हरदम क्यों लिखता वो ‘काश' है !

जिधर भी देखो सब दौड़े हैं, अपनी गागर भरने को
घूंट घूंट पीकर देखो तो  चार अंजुलि की प्यास है

अहले दिल की महफिल में है अब कैसा यह वीराना
आज भले ही तू न हो, फिर भी तेरा अहसास है

बेशक दस्तरखान बिछा है, पर फस्लें तो पकने दो
मत आना तुम मेहमाँ बनकर, कल परसों उपवास है

©Siddharth Priyadarshi