Thursday 25 February 2016

दूसरों को आईना दिखाने से पहले अपने चेहरे की गंदगी उसमें ज़रूर देख लेनी चाहिए--है न !!

जवाब आए तो कुछ यूँ आए
अब न तू आए; न तेरी बू आए !

तुझे रक्खा है हाशिए जैसा
हर्फ के बीच में तू क्यूँ आए

© Siddharth Priyadarshi

Monday 22 February 2016

मेरी तासीर से वाकिफ़ नहीं हो यार तुम मेरे
मैं जुगनूँ हूँ, अंधेरों में भी कितना साफ दिखता हूँ
मेरे अशआ़र रोशन हैं, मेरे हाथों की रोटी में
मैं लफ़्जों की द़ुकानो पर तभी शफ्फ़ाक बिकता हूँ

©Siddharth Priyadarshi

Friday 19 February 2016

मतलब के रिश्तों पर सब कुछ बे-मतलब सा लिखते हो..
बेशक आँखें छोटी हैं ! पर आर-पार तुम दिखते हो...

© Siddharth Priyadarshi

Thursday 11 February 2016

प्रेम-----मेरी नजर में

वैलेनटाइन्स वीक में मिज़ाज थोड़ा दार्शनिक हो रहा है. लम्बी पोस्ट है. धैर्य हो तभी पढ़िएगा. वैसे तो यह पोस्ट तेरह फरवरी को होनी थी पर कल से भयंकर ज्वर चढ़ने वाला है फेसबुक को. हम सोचे पहले ही अपना ताप निकाल लेते हैं.

मनुष्य जब पहली बार प्रेम करता है तो देवता होता है. दूसरी बार प्रेम करता हैनतो मनुष्य होता है. और तीसरी बार....! तीसरी बार वह प्रेम करता ही नहीं. प्रेम को लेकर मेरी कोई पूर्व स्थापना नहीं है. स्थापनाएं वैसे भी रूढ़ और प्राय: अस्थाई होती हैं. प्रेम चूकि हमारे नितांत निजी जीवन के अंतरंग अहसासों का मसला है इसलिए मैं उसे लेकर बहुत व्यवहारिक और दुनियादार होने का कायल भी नहीं हूँ. अपने अनुभव से जो सीखा है उसी आधार पर कहता हूँ कि प्रेम का हर रूप वास्तविक होता है. चाहे वह भीतर धीमें धीमें सुलगता हो या आग की लपटों की तरह सब कुछ जलाकर राख़ कर देने की ताकत रखता हो. इसका हर रूप उच्चतम है. प्रेम संबंधों में दुनियादारी और चतुराई नहीं होती, हिसाब किताब नहीं होता. अर्थशास्त्र और गणित कम रहता है. ध्यान दीजिएगा, मैं प्रेम संबंधों की बात कर रहा हूँ; टाइमपास ‘ज़रूरतों' की नहीं. उनकी तो बुनियाद ही ऐसे मानदण्डों पर होती है. प्रेम विज्ञान नहीं है जिसे उद्धरणों की प्रयोगशाला में साबित किया जा सके. यह विशुद्ध रूप से किसी के लिए या किसी के बिना जीने और मरने की कला है. देह इसमे एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. एक सहज स्वाभाविक आकर्षण से देह संबंध तक की यात्रा में प्रेम धीरे धीरे विकसित होता रहता है. प्रेमी को पाने की एकनिष्ठता इस कदर जुनूनी बनाती है कि पहले से चले आ रहे पारिवारिक रिश्ते भी पीछे छूटने लगते हैं. समझना होगा कि प्रेम का मतलब देह से इन्कारी होना नहीं ब्लकि देह से ग़ुजरकर इसके आर पार जाना है. लैला-मजनू से लेकर पारो देवदास सभी उदाहरण अगर देह तक ही तुष्ट हो जाते तो क्या ये कथाएं बनतीं ? ले लेता देवदास पारो की देह, बस कहानी ख़त्म !!

सच है और मैं भी सिद्धांत रूप में सहमत हूँ कि प्रेम को आत्महन्ता, आत्मनाशी नहीं बनना चाहिए, दुखदायी नहीं होना चाहिए. यह भी सही है कि प्रेम का  उच्चतम रूप, उसकी सत्ता और सार्थकता उसके आवेग की उन्मादी अभिव्यक्ति में है. पर उन्माद कभी भी पूज्य और आदर्श नहीं  हो सकता. उन्माद हमेशा नाश का कारण बनता है इसलिए यह महान नहीं हो सकता. अत: प्रेम को सभी प्रकार के अतिरेकों से मुक्त होकर सहज भाव की तरह जीवन में रहना चाहिए. प्रेम किसी के नाश का कारण नहीं बनना चाहिए. यह मनुष्य को विराट बनाने वाली भावना है यदि उसको किसी भी अतिरेक से रहित, सम्यक और संतुलित रूप में अन्य भावनाओं के साथ स्थान दिया जाय. थोड़ी उदासी, थोड़ा दुख, थोड़ा सुख, कुछ स्मृतियाँ, कुछ स्वपन, कुछ देह, कुछ आत्मा, कभी दृश्य, कभी अदृश्य, कभी मुख़र, कभी मौन-----ऐसा गुँथा बुना प्रेम ही स्थाई और दीर्घायु होता है. प्रेम में लोग पागल तक हो जाते हैं या करार दिए जाते हैं. यह भी बुरा नहीं है. क्योंकि प्रेम मानता है कि संतुलित दृष्टि और परिपक्व जीवन का पालन वह करें जिन्हें समाज रचना है; प्रेम तो मनुष्य रचता है.  प्रिय या प्रिया से बिछड़ने के बाद कम अवधि के लिए या आजीवन शांत और ठंडा अकेलापन चुनना भी प्रेम का एक रंग है.

आपके सब के जीवन में ऐसा प्रेम अवश्य आए, यह मेरी शुभकामना है. मेरे जीवन में मरून होते ‘नीले स्वेटर' का यह प्रेम शाश्वत बना रहे, ऐसी दुआ आप करें.
Wish You All very Happy Valentine's Day.

© Siddharth Priyadarshi