Monday 22 February 2016

मेरी तासीर से वाकिफ़ नहीं हो यार तुम मेरे
मैं जुगनूँ हूँ, अंधेरों में भी कितना साफ दिखता हूँ
मेरे अशआ़र रोशन हैं, मेरे हाथों की रोटी में
मैं लफ़्जों की द़ुकानो पर तभी शफ्फ़ाक बिकता हूँ

©Siddharth Priyadarshi

1 comment: